01 August 2019

गुफ्तगू



गंगा नदी के किनारे बैठी थी। मौसम भी सुहाना था। हल्कीसी हवा चल रही थी, सूरज ढलने ही वाला था, पक्षियों अपने अपने घोंसले में गीत गाते हुए लौट रही थी और मैं अपने आप से गुफ्तगू करने की कोशिश कर रही थी। जीवन के बारे में, बचपन की यादों के बारे में। बचपन के सुनहरे दिनों के बारे में सोच रही थी। दादी के साथ बिताए वो पल आज भी याद आते हैं। मैं लगभग ५ साल की थी जब पापा के काम के सिलसिले मे माँ, पापा और भाई के साथ दादी से मीलों दूर चली आयी थी। लेकिन हर साल मैं अपनी गर्मियों की छुट्टी दादी के घर में बिताती थी। वह बोहोत ही सुंदर, शांत और खुसमिसाल इंसान थीं। उनके घर मे तरह तरह के पेड़ो था। आम, अमरूद, नारियल, जाम्रुल और एक लंबा फलसा का पेड़ था। मैं अपने दोस्त के साथ पेड़ों पर चढ़कर फल तोरड़ती थी। सरे दोस्त मिल बाँट कर वो ताज़े फल तोड़कर खानेका मज़ा ही अलग था। दादी के घर के पास कई तालाब थे। दोपहर भर तालाब के पानी में खेलने का आनंद ही कुछ अलग था। एक लंबी सी बंसी लेकर मछली पकड़ने की कोशिश किया करती थी, लेकिन कभी भी कोई भी मछली पकड़ मे नहीं आयी। गाँवकि चाचा के दुकान में मछली और चंद्रमा आकार का कैंडी मिलता था। एक कैंडी की कीमत दो पैसे हुआ करता था। आज की कोई भी महंगी चॉकलेट उस स्वाद को भुला नहीं सकती है। लम्बे लाठी पे तंग कर एक आदमी "बूढ़ी की बाल" बेचने आता था। वो गुलाबी रंगों की "बूढ़ी की बाल" खा कर ज़िन्दगी ज़न्नत लगती थी। साइकिल पर सवार एक व्यक्ति कुछ बेचने आता था। उसके पास एक माइक हुआ करता था। जिस क्षण उन्होंने गाँव में कदम रखा, हम सरे दोस्त उनके माइक पकर कर नया नया सीखी हुयी सरे कविता और गीत गाना सुरु कर देते थे। वो मेरे जीवन के सबसे रोमांचक अनुभवों में से एक है । फिर जैसे-जैसे मैं बड़ी होने लागि दादी का घर जाना उतनाही कम होता गया और मेरी ज़िन्दगी उतनी ही फीकी सी होती गयी।

फिर मैने समाज कर्मो को लेकर आगे की पढाई की और मुझे बचपन दुबारा जीने का मौका मिला। खासकर जब मैंने काम की सिलसिला मे एक बिछड़े हुए गाँवमे अपनी महीनो गुज़री। गाँव के लोगों के साथ बिताए वो यादगार समय मैं जीवन भर स्मरण करूँगी। खुश नसीब हु मै जो मुझे लोगों से बहुत प्यार, सम्मान और स्नेह मिला। फिरसे मेरी ज़िन्दगी की तिजोरी रंगो से भर गयी। मुझे इतनी अच्छी यादें देने के लिए मैं गांव का शुक्रगुजार हूं। मैंने बहुत सारे शहर देखे हैं लेकिन मुझे वो यादगार लम्हा कहीं नहीं मिलीं। वे सही कहते हे कहते हैं कि हमारे भारत की आत्मा गांव में बसते है। अगर गाँव नहीं होता और में समाज कर्मो को लेकर पढ़ाई नहीं की होती तो आज अपने आप से गुफ्तगू न कर पाती और यह महसूस नहीं कर पाती कि मैंने अपने जीवन में कितने सारे धन कमाया है।

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